
Bihar Politics में इस साल के अंत में चुनाव होने को है लेकिन राजनीति अभी से शुरू हो चुकी है। बिहार की राजनीति में समाजवाद के नाम पर आए तीन बड़े नेता “लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान और नीतीश कुमार” परिवारवाद के खिलाफ खड़े थे। लेकिन जैसे-जैसे समय बितता गया यह तीनों खुद ही परिवारवाद की राजनीति में उलझते दिख रहे हैं। लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान ने तो पहले ही अपने परिवार के सदस्यों को राजनीति में उतार दिया। नीतीश कुमार भी अब इसी राह पर चलते नजर आ रहे हैं। उनके बेटे निशांत कुमार की राजनीति में एंट्री की खबरें लगातार चर्चा में। और उनकी गतिविधियां भी इस संकेत की पुष्टि कर रही है।
Bihar Politics: लालू यादव ने कांग्रेस के परिवारवाद का किया था विरोध
लालू प्रसाद यादव कांग्रेस में हो रहे परिवारवाद के विरोध में संपूर्ण क्रांति का बिगुल बजाते हुए राजनीती उतरे थे और आज स्वयं अपने परिवार को राजनीति में पूर्ण रूप से स्थापित कर चुके हैं। उन्होंने अपनी राजनीति कांग्रेस के विरोध में ही चमकाई। यहां तक की कांग्रेस की परिवार नियोजन योजना का भी विरोध किया। लालू यादव के 9 बच्चे हैं। जब चारा घोटाला का मामला सामने आया और जेल जाने की नौबत आई तो उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया।
राजनीतिक एक्सपर्ट का कहना है कि अगर राबड़ी देवी मुख्यमंत्री नहीं बनती तो पार्टी खंडित हो जाती। इसके बाद लालू यादव के साले सुभाष यादव, साधु यादव, बेटी निशा भारती, बेटे तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव और बेटी रोहिणी आचार्य सभी राजद की राजनीति में सक्रिय नेता के रूप में कार्यरत है।
Bihar Politics: रामविलास पासवान और परिवारवाद
बिहार के कद्दावर नेता रामविलास पासवान अपने भाषणों में अक्सर यह कहा करते थे की रानी के पेट से ही राजा पैदा नहीं होता। और अब खुद ही अपने परिवार को राजनीति में पूर्ण रूप से स्थापित कर चुके हैं। परिवारवाद के विरोध में संपूर्ण क्रांति से निकले रामविलास पासवान ने पहले ही लोकसभा चुनाव में भारी मतों से जीत हासिल की थी। लेकिन जब उनकी बारी आई तो उन्होंने अपने भाई पशुपति पारस, रामचंद्र पासवान मां के परिवार हजारी फैमिली और अपनी अगली पीढ़ी के चिराग पासवान, प्रिंस पासवान को राजनीति में उतार दिया। हालांकि उनका यह कृत्य उनके ही कथनों का विरोधाभास है जिसमें वह परिवारवाद की राजनीति का विरोध किया करते थे।
Bihar Politics: क्या नीतीश कुमार भी परिवारवाद की राजनीति में!
नीतीश कुमार अब तक तो परिवारवाद और “पति-पत्नी की सरकार’ का विरोध करते आए हैं और अब खुद भी उसी राह पर चलते नजर आ रहे हैं। उनके बेटे निशांत कुमार की राजनीति में आने की खबरें काफी चर्चा में है। हालांकि निशांत कुमार अब तक अध्यात्म में रमे हुए थे अब राजनीति में अपनी रुचि दिखा रहे हैं। निशांत कुमार ने जनता और एनडीए के रणनीतिकारों से आग्रह किया है कि पापा नीतीश को दोबारा से मुख्यमंत्री बनाया जाए और उनके विकास कार्य का सम्मान किया जाए।
हालांकि राजनीतिक पंडित इसे अभी भी सच नहीं मान रहे थे। लेकिन होली के मौके पर जब निशांत कुमार के भाव देखे गए तो उनके हावभाव में राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी साफ दिख रही थी। जिस तरह से निशांत कुमार जदयू नेताओं से मुलाकात कर रहे थे और जिस तरह से उन्होंने वरिष्ठ नेता विजय चौधरी और कार्यकारी अध्यक्ष के कंधे पर हाथ रखकर मुस्कुराते हुए फोटो खिंचवाई उससे यह साफ़ जाहिर होता है कि वह अपनी राजनीति पारी शुरू करने के मूड में है।
Bihar Politics: क्या परिवारवाद की राजनीति में सफल होंगे नीतीश?
कहीं ना कहीं लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान की परिवारवाद की राजनीति तो सफल होती दिखी है। अब देखना ये दिलचस्प होगा कि क्या नीतीश कुमार परिवारवाद की राजनीति में सफल हो पाते हैं ? क्या वह अपने बेटे निशांत कुमार को राजनीति में स्थापित कर पाएंगे या फिर उनकी यह कोशिश नाकाम ही रह जाएगी। खैर, बिहार की राजनीति में एक नया परिवारवाद का अध्याय किस प्रकार लिखा जाएगा यह तो समय ही बताएगा।
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