
International Widows Day 2025: जब माँ से छीन लिए गए गहने ,विधवा का दर्द बना आंदोलन
International Widows Day 2025: हर साल 23 जून को अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य यह है कि समाज में विधवा महिलाओं की समस्या पर प्रकाश डाला जाए, विधवा महिलाओं की चुनौतियां अन्याय के बारे में बात किया जाता है। विधवाओं के लिए जागरूकता फैलाने में आर्थिक कठिनाई, सामाजिक कलंक, उनके शिक्षा रोजगार तथा विरासत के अधिकारों की बात की जाती है।
International Widows Day 2025
अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस की स्थापना 2005 में लंबा फाउंडेशन द्वारा करी गई थी। 2010 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता मिली, इसके बाद हर साल 23 जून को अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस मनाया जाने लगा।
23 जून ही क्यों?
अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस मनाने का दिन 23 जून की इसीलिए चुना गया क्योंकि, सन 1954 में फाउंडेशन के स्थापक लॉर्ड राज लंबा की माता श्रीमती पुष्पावती लंबा विधवा हो गई थी। इसीलिए प्रत्येक वर्ष 23 जून को ही अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस मनाया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस मनाने का उद्देश्य!
अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस यानी International Widows Day मनाने का उद्देश्य यह है की विधवा महिलाओं को इस तरीके से सम्मान और अधिकार मिले जिस तरह एक शादीशुदा महिला को मिलता है। भारतीय समाज विधवा महिला को उसे तरह नहीं देखा जिस तरह वह पहले देखा करता था, सिर्फ इसी वजह से क्योंकि उनके पति अब इस दुनिया में नहीं रहा। पर क्या एक महिला का अस्तित्व उसके पति से ही है? क्या एक महिला का खुद का अस्तित्व नहीं होता?
एक विधवा महिला समाज में कई परेशानियों से गुजरती है, क्योंकि पति न होने के कारण अब महिला को ही अपना वह अपने बच्चों का पालन पोषण व उनका भविष्य देखना होता है।
अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस मनाने का उद्देश्य यही है कि विधवा महिलाओं के सामने आने वाली कठिनाई और मुश्किल परिस्थितियों के बारे में जागरूकता फैलाई जाए। विधवाओं को और उनके बच्चों के लिए सशक्तिकरण कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाए। और सबसे बड़ा उद्देश्य की रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़कर तथा कई सांस्कृतिक परंपराओं को तोड़कर विद्वान के हित में नई परंपराएं बनाई जाए।
वैश्विक महत्व:
दुनिया में 28 करोड़ से ज्यादा महिलाएं विधवा हैं, और इनमें से कई बहुत ही गरीब हालात में जीती हैं।
कई जगहों पर विधवाओं को समाज से अलग कर दिया जाता है, उनके साथ बुरा बर्ताव होता है और उन्हें अपनी ही ज़मीन या संपत्ति के अधिकार से भी वंचित कर दिया जाता है।
अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस का मकसद है – सरकारों, समाज और लोगों को इस बात के लिए जागरूक करना कि वे विधवाओं के लिए एक बेहतर, समान और न्यायपूर्ण दुनिया बनाएं।
21 दिसंबर 2010, न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र की बैठक के दौरान गैबॉन के राष्ट्रपति अली बोंगो ओन्डीम्बा ने दुनिया भर की विधवाओं की मुश्किल ज़िंदगी पर ध्यान दिलाया।
उन्होंने बताया कि कैसे पति की मौत के बाद लाखों महिलाएं गरीबी में जीने लगती हैं, समाज उन्हें अकेला छोड़ देता है, और उनके बच्चे भी तकलीफों से गुजरते हैं। यह सब न सिर्फ मानव अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि समाज की एकता को भी नुकसान पहुंचाता है।
उन्होंने सभी देशों से अपील की कि वे विधवाओं की हालत सुधारने और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए कदम उठाएं। उन्होंने “अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस” मनाने का सुझाव दिया, जो अब हर साल 23 जून को मनाया जाता है।
इस आंदोलन की शुरुआत भारत के पंजाब में हुई थी, जब 23 जून 1954 को एक व्यापारी जगीरी लाल लूम्बा की मौत के बाद उनकी पत्नी पुष्पा वती विधवा हो गईं। उनके बेटे राज लूम्बा ने बचपन में देखा कि कैसे उनकी माँ से उनके गहने, बिंदी और रंगीन कपड़े छीन लिए गए और उन्हें ‘मनहूस’ कहा गया।
राज लूम्बा ने जब बड़े होकर सफलता पाई तो उन्होंने अपनी माँ के सम्मान और विधवाओं के अधिकारों के लिए लूम्बा फाउंडेशन की शुरुआत की। यह फाउंडेशन गरीब विधवाओं और उनके बच्चों को शिक्षा देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाता है।
अब तक, 10,000 से ज्यादा बच्चों को छात्रवृत्ति दी जा चुकी है और भारत के हर राज्य में यह काम हो रहा है। कई बच्चे अब अपने परिवार को सहारा दे रहे हैं और सम्मान से जीवन जी रहे हैं।
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