Nithari case: 18 साल इंतज़ार… और गुनहगार आज़ाद? निठारी कांड का सच कहाँ खो गया?
Nithari case: नोएडा के निठारी गांव की तंग गलियों में आज भी एक दबा हुआ सन्नाटा घूमता है। यह वही जगह है जिसने पूरे देश को हिला देने वाला कांड देखा— दर्जनों बच्चों का गायब होना, उनके शरीर के हिस्से घर के पीछे से मिलना और एक ऐसा मामला जिसने हर भारतीय को झकझोर दिया था।
18 साल बाद, जब आखिरकार सुरेंद्र कोली को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया और जेल से रिहाई का आदेश जारी हुआ— गांव फिर सवालों से भर गया। पीड़ित परिवारों की एक ही पुकार है—
“अगर ये गुनहगार नहीं थे… तो हमारे बच्चे कहां गए? और हमारे बच्चों की चीखें कौन सुनेगा?”
निठारी की कोठी D-5 और खौफनाक सच
दिसंबर 2006 में इस केस का राज तब खुला जब निवासियों ने घर D-5 के पीछे नाले में से सड़ी हुई हड्डियाँ और शरीर के हिस्से निकालकर पुलिस को दिखाए। बाद में जांच में पता चला कि बच्चों को गायब किया गया, उनकी हत्या की गई और अवशेषों को कोठी के पीछे फेंका या दफनाया गया।
सुरेंद्र कोली, एक रसोइया, जो उत्तराखंड के अल्मोड़ा से काम की तलाश में दिल्ली आया था, मोनिंदर सिंह पंढेर के घर काम पर रखा गया। कोठी में पंढेर और कोली ही रहते थे। कोली ने अपने इकबालिया बयान में 12 बच्चों और 1 महिला की हत्या, उनके शरीर को काटने और कुछ हिस्सों को खाने तक की बात स्वीकार की थी। यह बयान देश को अंदर तक हिला देने वाला था।
फिर भी अदालत में क्यों हुआ बरी?
कई वर्षों की सुनवाई, कई फैसले और कई बार दोषसिद्धि होने के बाद, 2023 और 2025 में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने दोनों को साक्ष्य कमजोर होने की वजह से बरी कर दिया।
सबसे विवादित बात यह है कि: “Kidnapping, Raping, Cutting into pieces and Eating 12 kids and 1 adult” जैसा क्रूर अपराध स्वीकार करने वाला व्यक्ति…
सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की बेंच (जिसमें वर्तमान CJI और अगले CJI भी शामिल थे) से बरी होकर जेल से बाहर आ गया। यही तथ्य लोगों के गुस्से को और बढ़ा रहा है।
पीड़ित परिवारों का दर्द: “न बेटी रही, न पैसा, न इंसाफ”
झब्बू लाल, जिनकी 10 साल की बेटी ज्योति डॉक्टर बनना चाहती थी, आज प्रेस की छोटी दुकान चलाते हैं।
उनकी आवाज़ कांप जाती है की “मैंने खुद अपने हाथों से बच्चों के कटे सिर बाहर निकाले। सब देखा था। अगर ये लोग निर्दोष थे… तो मेरी बच्ची को किसने मारा?”
वे आगे कहते हैं, “18 साल से लड़ रहा था केस। बेटी भी चली गई… पैसा भी चला गया… अब इंसाफ मिलने की उम्मीद भी खत्म।”
किशन लाल और पूनम, जिनका 3 साल का बेटा हर्ष गायब हुआ था, कहते हैं,
“पहले नेता आते थे, अधिकारी आते थे… पर अब कोई नहीं आता। उम्मीद भी खत्म हो गई। हमारा बेटा आज जिंदा होता तो 23 साल का होता…” पीड़ित परिवारों के लिए कोर्ट के इस फैसले ने घावों को फिर ताज़ा कर दिया है।
Koli confession case — न्यायपालिका पर बड़ा सवाल
केस की सबसे बड़ी बहस यही है: जब आरोपी ने खुद स्वीकार किया कि उसने बच्चों को मारा, काटा और कई हिस्से खाए!
तो फिर आज वह खुली हवा में कैसे घूम रहा है? क्या हमारी अदालतें इतनी कमजोर हैं कि सबसे बड़े और सबसे खतरनाक अपराधों में भी “साक्ष्य कमजोर” होने की वजह से अपराधी छूट जाता है?
लोग पूछ रहे हैं की “अगर निठारी जैसे अपराध में भी इंसाफ नहीं मिला… तो आम भारतीय किसके पास जाए?”
Nithari murder case Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट का तर्क क्या था?
दोषमुक्ति का आधार था:
- पुलिस की शुरुआती जांच में गंभीर खामियाँ
- गवाहों के बयान बदलना
- मेडिकल और फॉरेंसिक साक्ष्यों में अस्पष्टता
- घटनाओं की टाइमलाइन में विरोध
- इकबालिया बयान पर अकेले भरोसा नहीं किया जा सकता
लेकिन सवाल यह भी उठ रहा है—अगर जांच में कमी थी… तो जिम्मेदार कौन है? पुलिस? CBI? या सिस्टम? और सबसे बड़ा सवाल— क्या जांच की गलती की सजा बच्चों और उनके परिवारों को मिलनी चाहिए?
18 साल बाद भी वही सवाल ज़िंदा
निठारी गांव में आज भी लोग पूछ रहे हैं:
बच्चे गायब कैसे हुए?
किसने मारा?
शरीर के हिस्से किसने फेंके?
कोठी के अंदर क्या होता था?
अगर कोली और पंढेर निर्दोष हैं… तो असली गुनहगार कौन?
इन सवालों के आज तक जवाब नहीं मिले।
निठारी कांड सिर्फ अपराध नहीं… व्यवस्था की नाकामी की कहानी है
यह केस बताता है कि
- पुलिस ने शुरुआत में शिकायतें अनदेखी कीं
- परिवारों को “झूठ बोलने वाला” कहा
- सबूत सुरक्षित नहीं रखे गए
- जांच कई बार बदलती रही
- अदालतें निर्णय देने में वर्षों लगा बैठीं
और आखिर में क्या हुआ?
जो व्यक्ति खुद अपराध स्वीकार कर चुका था… वह भी आज आज़ाद है।
क्या भारतीयों के साथ न्याय हुआ?
देश में एक बड़ा वर्ग पूछ रहा है: “अगर स्वीकार करने के बाद भी अपराधी बरी हो सकता है… तो आम भारतीय को किस अपराध में इंसाफ मिलेगा?” निठारी के परिवारों का दुख सिर्फ उनका नहीं, पूरे समाज की चिंता बन गया है।
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