
Sawan Shiv Puja: भगवान शिव को क्यों चढ़ाया जाता है जल और बेल पत्र? जानें पूरी पौराणिक कथा और जलाभिषेक के नियम
Sawan Shiv Puja: भगवान शिव – संहार के देवता, तपस्वियों के तपस्वी और भोलेनाथ। उनका नाम आते ही श्रद्धा और भक्ति से मन भर जाता है। वे ऐसे देव हैं जो सिर्फ एक लोटा जल और कुछ बेल पत्रों से ही प्रसन्न हो जाते हैं। न कोई बड़ी पूजा, न भारी खर्च – बस सच्चे मन से अर्पित की गई आस्था ही काफी है।
शिव जी को प्रसन्न करने के लिए कठिन तप की आवश्यकता नहीं होती। यही कारण है कि उन्हें ‘भोलेनाथ’ कहा जाता है – जो अपने भक्तों की सच्ची भावना से प्रसन्न हो जाते हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि भगवान शिव को जल और बेलपत्र क्यों चढ़ाया जाता है, उसके पीछे की पौराणिक कथा क्या है, और जलाभिषेक के नियम क्या हैं।
भगवान शिव और उनकी भक्ति का महत्व
शिव पुराण और अन्य ग्रंथों में बताया गया है कि भगवान शिव को प्रसन्न करना सबसे सरल है। वे साकार और निराकार दोनों रूपों में पूजे जाते हैं। शिवलिंग उनके निराकार रूप का प्रतीक है, और अधिकतर पूजा इसी शिवलिंग पर की जाती है।
सोमवार का दिन विशेष रूप से भगवान शिव को समर्पित है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं, जल चढ़ाते हैं, बेल पत्र अर्पित करते हैं और शिव मंत्रों का जाप करते हैं।
पौराणिक कथा – नीलकंठ बनने की कथा
एक बार की बात है, जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ। इस मंथन से अमृत तो निकला ही, साथ ही एक घातक विष भी निकला, जिसका नाम था – हलाहल।
यह विष इतना ज़हरीला था कि इसका प्रभाव पूरे ब्रह्मांड को नष्ट कर सकता था। सभी देवता चिंतित हो गए। न कोई इसे पी सकता था, न रोक सकता था। तब सभी देव भगवान शिव की शरण में गए।
भगवान शिव ने संसार की रक्षा के लिए वह विष स्वयं पी लिया। लेकिन उन्होंने उसे निगला नहीं, बल्कि अपने कंठ में ही रोक लिया। इस कारण उनका गला नीला पड़ गया और वे नीलकंठ कहलाए। लेकिन विष का प्रभाव उनके शरीर पर पड़ा और उनका शरीर अत्यधिक गर्म होने लगा। चारों ओर गर्मी और अग्नि फैलने लगी। तब देवताओं ने उन्हें ठंडक पहुंचाने के लिए उनके ऊपर जल चढ़ाना शुरू किया और विष का प्रभाव कम करने के लिए बेल पत्र अर्पित किया।
इसी घटना के बाद से भगवान शिव पर जल और बेल पत्र चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई, जो आज तक चली आ रही है।
बेल पत्र का महत्व
बेल पत्र को शुद्धता, शीतलता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि बेल पत्र विष के प्रभाव को शांत करता है। इसके तीन पत्तों वाले स्वरूप को त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी माना जाता है।
शास्त्रों में कहा गया है –
“बिल्वपत्रं त्रिदलं त्रिनेत्रं त्रिगुणात्मकं त्रिगुणेशदं”
अर्थात – बेलपत्र तीन पत्तों का होता है जो भगवान शिव के तीन नेत्रों, तीन गुणों और त्रिदेवों का प्रतीक है।
जलाभिषेक का महत्व और नियम
भगवान शिव को जल चढ़ाना यानी जलाभिषेक करना एक महत्वपूर्ण पूजा पद्धति है। यह न केवल शिव जी को शीतलता देता है, बल्कि यह भक्त की भावनाओं का सरलतम अर्पण होता है।
जलाभिषेक के प्रमुख नियम इस प्रकार हैं:
- शिवलिंग पर ही करें जलाभिषेक:
किसी अन्य मूर्ति या देवता पर नहीं। शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय मन शांत रखें। - तुलसी पत्र से करें परहेज़:
तुलसी पत्ता भगवान विष्णु को प्रिय है लेकिन शिव को अर्पित करना वर्जित माना गया है। - पूर्ण परिक्रमा न करें:
जलाभिषेक के बाद शिवलिंग की पूरी परिक्रमा नहीं करनी चाहिए। शिवलिंग से निकला जल गंगा माना जाता है, जिसे लांघना अशुभ होता है। - शिवलिंग को हाथ न लगाएं:
बिना अनुमति या उचित विधि के शिवलिंग को स्पर्श नहीं करना चाहिए। - मंत्रोच्चार के साथ करें अभिषेक:
“ॐ नमः शिवाय” मंत्र या “महामृत्युंजय मंत्र” का जाप करते हुए जल चढ़ाएं। - मंदिर में न बोलें ज़ोर से:
पूजा के दौरान मंदिर में शांति रखें और बातचीत से बचें। - दोपहर 12 से 4 के बीच न करें अभिषेक:
इस समय को शिव विश्राम काल माना गया है, इसलिए पूजा टालना चाहिए। - चढ़ी हुई सामग्री का अधिकार:
जो भक्त पूजा करता है, केवल उसी का उस सामग्री पर अधिकार होता है। कोई अन्य उसे स्पर्श या उपयोग नहीं कर सकता।
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शिव भक्ति में श्रद्धा ही सबसे बड़ी पूजा है
भगवान शिव अपने भक्तों की सच्ची श्रद्धा और निष्ठा से जल्दी प्रसन्न होते हैं। चाहे साधु-संत हो या सामान्य गृहस्थ – अगर श्रद्धा सच्ची हो तो शिव जी वरदान देने में देर नहीं करते।
भोलेनाथ की पूजा में दिखावा नहीं, भावना चाहिए। एक बेलपत्र, एक लोटा गंगाजल, और “ॐ नमः शिवाय” की ध्वनि ही शिव को खींच लाती है।
भगवान शिव पर जल और बेल पत्र चढ़ाने की परंपरा सिर्फ पूजा नहीं, बल्कि एक गहरी पौराणिक श्रद्धा और भावना से जुड़ी हुई है। नीलकंठ की कथा हमें सिखाती है कि कैसे एक देव पूरी सृष्टि के लिए विषपान करता है और फिर भी शांत, करुणामय और भक्तवत्सल बना रहता है।
तो इस सावन में, सोमवार के दिन, भगवान भोलेनाथ को जल अर्पित करें, बेलपत्र चढ़ाएं और सच्चे मन से “ॐ नमः शिवाय” का जाप करें। यकीन मानिए – महादेव आपकी हर पुकार सुनते हैं।
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