
Supreme Court ने उत्तर प्रदेश में स्थित ताज ट्रैपेज़ियम जोन में अवैध तरीके से पेड़ों की कटाई को लेकर सख्त रुख दिखाते हुए बिजनेसमैन पर हर पेड़ के बदले एक लाख जुर्माना लगाया है। दरअसल, इस बिजनेसमैन पर कुल 454 पेड़ काटने का आरोप लगा है। उस हिसाब से उसे 4 करोड़ 54 लाख रुपए की कुल रकम जुर्माने के तौर पर देनी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इतने पेड़ काटना हत्या से भी बड़ा अपराध है। इस तरह के लोगों के साथ दया भाव नहीं बरती जा सकती जो पर्यावरण को हानि पहुंचाते हैं।
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने लिया फैसला
जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जवल भुईया की बेंच ने कहा कि “बिना इजाजत के 454 पेड़ काटना एक निंदनीय अपराध है। इस हरित क्षेत्र को फिर से बनाने में लगभग 100 साल लग जाएंगे। यह 2015 से लागू कोर्ट के प्रबंधन का खुला उल्लंघन है।” कोर्ट ने इस बात को भी स्पष्ट किया कि पर्यावरण को हानि पहुंचाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
केंद्रीय सशक्त समिति की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले वर्ष 18 सितंबर की रात को वृंदावन चटीकरा रोड पर डालमिया फॉर्म नामक निजी जमीन पर 422 पेड़ और उससे सटी सड़क के किनारे संरक्षित वन क्षेत्र में 32 पेड़ अवैध रूप से काटे गए हैं। कोर्ट का कहना है कि यह रिपोर्ट बहोत चौंकाने वाली है और न्यायालय के आदेश का खुला उल्लंघन है।
Supreme Court: कंपनी ने लगाई दया की गुहार
बिजनेसमैन और कंपनी के मालिक शिव शंकर अग्रवाल ने कोर्ट में दलील दी है कि जुर्माने की राशि कम कर दी जाए। उन्होंने कहा कि मैं गलती को स्वीकार करता हूं और माफी चाहता हूं। सिर्फ उसी जमीन पर नहीं बल्कि पास के सभी क्षेत्रों में पौधारोपण की अनुमति दी जाए। कोर्ट ने जुर्माना कम करने से साफ इनकार कर दिया है।
हालांकि पास के क्षेत्र में पौधा रोपण की अनुमति दे दी है। कोर्ट के सामने पेश के किये गए मामले में कोर्ट ने सीईसी की सिफारिश को स्वीकार किया है जिसमें प्रत्येक पेड़ के लिए ₹100000 का जुर्माना लगाने की बात कही गई थी। समिति ने सुझाव दिया है कि वन विभाग को यूपी प्रोटेक्शन ऑफ़ ट्रीज एक्ट 1976 के तहत जुर्माना वसूलना चाहिए और संरक्षित वन में काटे गए 32 पेड़ों के लिए इंडियन फारेस्ट एक्ट 1972 के तहत कार्रवाई भी करनी होगी।
Supreme Court: पर्यावरण संरक्षण मजाक नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने शिव शंकर अग्रवाल के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई भी प्रारंभ की है और सीईसी से उनके खिलाफ आगे की कार्रवाई के लिए सलाह की मांग की। कोर्ट का कहना है कि यह मामला कानून और पर्यावरण की अवहेलना का एक प्रत्यक्ष उदाहरण है। सहायक वरिष्ठ वकील एडीएन राव ने सुझाव दिया कि अपराधियों को कड़ी चेतावनी देना जरूरी है। न हीं तो कानून और ना ही पेड़ों को हल्के में लिया जा सकता है। बेंच ने इस सलाह को स्वीकार किया है और कहा के पर्यावरण संरक्षण मजाक नहीं है इसमें कोई भी ढील नहीं बरती जाएगी।
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