आज से ठीक सात साल पहले, 11 साल के Dommaraju Gukesh ने एक साक्षात्कार में एक बयान दिया था, जिसे आज पूरी दुनिया याद कर रही है। उन्होंने कहा था, “मैं दुनिया का सबसे कम उम्र का शतरंज चैंपियन बनना चाहता हूं।” और आज, उसी युवा ने यह सपना सच कर दिखाया है। डोम्माराजू गुकेश, जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण से शतरंज की दुनिया में अपनी पहचान बनाई, अब 18 साल की उम्र में सबसे कम उम्र के विश्व चैंपियन बन गए हैं।
गुकेश का यह सफर आसान नहीं था। 12 दिसंबर 2024 को, उन्होंने चीन के डिंग लिरेन को हराकर इतिहास रच दिया। तीन हफ्ते तक चली शतरंज की इस ऐतिहासिक लड़ाई में गुकेश ने मानसिक और शारीरिक दोनों तरह से अपनी ताकत साबित की। इस मुकाबले में गुकेश ने न सिर्फ अपनी अद्वितीय रणनीतिक सोच को दर्शाया, बल्कि मानसिक दृढ़ता और संयम का भी बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किया।
Dommaraju Gukesh की खेल की तैयारी
गुकेश की सफलता की एक महत्वपूर्ण वजह उनकी तैयारी है। विश्व चैंपियनशिप के लिए उन्होंने एक किताब की तरह शतरंज को पढ़ा, जिसमें हर छोटी-सी बात पर ध्यान दिया गया था। उनका ध्यान हमेशा एक लक्ष्य पर केंद्रित था: शतरंज का विश्व चैंपियन बनना। उनकी कोच, ग्रैंडमास्टर विष्णु प्रसन्ना ने एक बार कहा था, “गुकेश में बचपन से ही शतरंज के प्रति एक गहरा समर्पण था। वो हमेशा अपने लक्ष्य को लेकर गंभीर और प्रतिबद्ध थे। उनका खेल में ध्यान और समर्पण बाकी बच्चों से कहीं ज्यादा था।”
मानसिक दृढ़ता और संयम
शतरंज सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि एक मानसिक युद्ध है। गुकेश ने अपने इस मानसिक संघर्ष को शानदार तरीके से अंजाम दिया। विश्व चैंपियनशिप के पहले खेल में ही वह एक अंक से पीछे हो गए थे, लेकिन उनका आत्मविश्वास कभी नहीं टूटा। उन्होंने गेम 13 में आकर अपनी पूरी ताकत लगाई और डिंग लिरेन के खिलाफ एक शानदार जीत हासिल की। गुकेश ने कभी भी हार मानने का नाम नहीं लिया। उनका कहना था, “मैं हमेशा एक लड़ाई के लिए तैयार रहता हूं।”
दूसरी ओर, डिंग लिरेन को भी कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। वह कई बार मजबूत स्थिति में होने के बावजूद ड्रॉ करने का विकल्प अपनाते रहे। यह मानसिक कमजोरी गुकेश के लिए लाभकारी साबित हुई। गुकेश ने उन गलतियों का पूरा फायदा उठाया और मैच को अपने पक्ष में किया।
Dommaraju Gukesh की खेल शैली
गुकेश की खेल शैली में जोखिम लेने की प्रवृत्ति रही है। उनका दिमाग हमेशा नए और अनपेक्षित चालों पर काम करता है। वह हमेशा अपने विरोधी को अप्रत्याशित स्थितियों में डालते हैं, जहां से निकलने की संभावना कम हो जाती है। यह उनका आत्मविश्वास और उनकी युवा ऊर्जा का ही नतीजा है कि उन्होंने कई बार हार के कगार पर खड़े होकर मैच को पलट दिया।
शतरंज के दिग्गज, जैसे सुसान पोल्गार ने भी गुकेश की प्रतिभा को पहले ही पहचान लिया था। उन्होंने कहा था, “गुकेश में कुछ खास है। उसकी खेल शैली, मानसिकता और शतरंज के प्रति उसका समर्पण बहुत ही विशेष है। मुझे पूरा यकीन है कि वह भविष्य में शतरंज का बादशाह बनेगा।”
भारत का गौरव
Dommaraju Gukesh की जीत सिर्फ उनके लिए नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए गर्व का क्षण है। वह भारत के सबसे कम उम्र के ग्रैंडमास्टर हैं और अब विश्व चैंपियन बनकर इतिहास में नाम दर्ज करवा चुके हैं। उनकी सफलता ने भारत के शतरंज प्रेमियों को एक नई प्रेरणा दी है। इससे यह भी साबित होता है कि भारतीय शतरंज के खेल में एक नई लहर आ रही है।
Dommaraju Gukesh ने पहले ही कई रिकॉर्ड तोड़ने का काम किया है। वह भारत के सबसे कम उम्र के ग्रैंडमास्टर हैं और सबसे कम उम्र में कैंडिडेट्स टूर्नामेंट जीतने वाले खिलाड़ी भी हैं। इसके अलावा, उन्होंने विश्व रैंकिंग में भी शीर्ष स्थानों पर पहुंचकर भारत का नाम रोशन किया है।
भविष्य की ओर
गुकेश की सफलता के बाद अब एक सवाल यह उठता है कि उनका अगला कदम क्या होगा? क्या वह भविष्य में शतरंज के और भी बड़े कीर्तिमान स्थापित करेंगे? शतरंज के जानकार मानते हैं कि गुकेश का सबसे अच्छा समय अभी आना बाकी है। उनका खेल, उनकी मानसिकता, और उनके समर्पण से यह साफ है कि शतरंज की दुनिया में उनका भविष्य और भी उज्जवल है।
Dommaraju Gukesh का यह सफर सिर्फ एक खिलाड़ी की कहानी नहीं है, बल्कि एक प्रेरणा है। यह कहानी है उस बच्चे की, जिसने बचपन में अपना सपना देखा और उसे हकीकत में बदलने के लिए कड़ी मेहनत की। आज, गुकेश न सिर्फ भारत, बल्कि दुनिया भर में युवा खिलाड़ियों के लिए एक आदर्श बन गए हैं।
उनकी इस जीत से यह भी स्पष्ट होता है कि शतरंज अब केवल कुछ चुनिंदा देशों तक सीमित नहीं रहा है। भारत जैसे देश में भी अब शतरंज के प्रति जुनून और समर्पण बढ़ रहा है, और यह देश भविष्य में और भी अधिक विश्व चैंपियनों को जन्म देगा।
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