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दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025: आम आदमी पार्टी की हार के पीछे ये रही 4 बड़ी वजहें
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025: दिल्ली नगर निगम (MCD) चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) को बड़ा झटका लगा है। आम आदमी पार्टी, जो कि बीते विधानसभा चुनावों में दिल्ली में शानदार प्रदर्शन कर चुकी थी, इस बार अपनी परंपरागत रूप से मजबूत सीटों को भी नहीं बचा पाई। मालवीय नगर, ग्रेटर कैलाश और संगम विहार जैसी सीटों पर हार ने पार्टी के लिए कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
चुनावी नतीजों पर विश्लेषकों का मानना है कि आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच लगभग 4% वोटों का अंतर था, हालांकि केजरीवाल समर्थक इसे 2% तक सिमटा हुआ बता रहे हैं। इस चुनाव में आम आदमी पार्टी को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा और क्या कारण रहे जिससे बीजेपी ने बढ़त बना ली? आइए जानते हैं
1. फ्री बिजली-पानी के बावजूद वोटर्स ने क्यों चुनी BJP?
बीते चुनावों में देखने को मिला था कि कई मतदाता जो आमतौर पर लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वोट देते थे, वे विधानसभा और नगर निगम चुनावों में अरविंद केजरीवाल की मुफ्त बिजली-पानी योजनाओं की वजह से AAP की ओर झुक जाते थे।
लेकिन इस बार बीजेपी ने इस वोट बैंक में सेंधमारी कर ली। बीजेपी ने जनता को भरोसा दिलाया कि अगर वह सत्ता में आई तो भी फ्री बिजली-पानी की योजनाएं जारी रहेंगी। इससे उन मतदाताओं को भी आसानी हुई जिन्होंने पहले AAP को सिर्फ मुफ्त सुविधाओं के कारण वोट दिया था, लेकिन अब वे बीजेपी के हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के एजेंडे के साथ जुड़ गए।
केजरीवाल का सॉफ्ट हिंदुत्व वाला रुख—जैसे कि हनुमान भक्ति, अनुच्छेद 370 पर रुख और दिल्ली दंगों में एकतरफा स्टैंड—पहले उनके पक्ष में काम करता था, लेकिन इस बार बीजेपी ने इसे अपने पक्ष में करने में कामयाबी हासिल कर ली।
2. नॉन-परफॉर्मिंग विधायकों के टिकट न काटना बना मुसीबत
एक और बड़ी गलती जो AAP से हुई, वह थी कमजोर प्रदर्शन करने वाले विधायकों को दोबारा टिकट देना। पार्टी के कई मौजूदा पार्षदों के खिलाफ जनता में नाराजगी थी, लेकिन बावजूद इसके पार्टी ने उनके टिकट नहीं काटे।
उदाहरण के लिए, राखी बिडलान और अखिलेशपति त्रिपाठी जैसे नेताओं की कार्यशैली से जनता असंतुष्ट थी। लेकिन AAP ने सोचा कि वोट केवल केजरीवाल के चेहरे पर मिलेंगे और उम्मीदवार का प्रदर्शन मायने नहीं रखेगा।
परिणामस्वरूप, मतदाताओं ने इसे केजरीवाल का अहंकार मान लिया और उन सीटों पर भाजपा को समर्थन दे दिया।
3. माइक्रो मैनेजमेंट से BJP ने कांटे की सीटें भी जीत लीं
दिल्ली नगर निगम चुनावों में एक दिलचस्प आंकड़ा यह देखने को मिला कि जहां आम आदमी पार्टी ने जो भी सीटें जीतीं, वहां अच्छे मार्जिन से जीत दर्ज की। दिल्ली कैंट को छोड़कर, जहां AAP सिर्फ 2029 वोटों से जीती, बाकी सीटों पर उसका प्रदर्शन अच्छा रहा।
इसके विपरीत, भाजपा ने 8 सीटों पर 2000 से भी कम वोटों के अंतर से जीत हासिल की। इसका मतलब है कि जहां-जहां मुकाबला कड़ा था, वहां भाजपा ने अपने बेहतर चुनावी प्रबंधन और बूथ लेवल स्ट्रैटेजी के जरिए जीत सुनिश्चित की।
इससे यह साफ हुआ कि भाजपा ने मार्जिनल सीटों पर माइक्रो मैनेजमेंट इतनी बारीकी से किया कि अंतिम क्षणों में भी वोटर्स को अपने पक्ष में कर लिया, जबकि आम आदमी पार्टी इसमें पिछड़ गई।
4. नगर निगम चुनावों में स्थानीय मुद्दे रहे हावी
दिल्ली जैसे घनी आबादी वाले शहर में सड़कें, जल निकासी और कूड़ा प्रबंधन सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे थे। भाजपा ने इस मुद्दे पर ज्यादा ध्यान दिया और यह मतदाताओं को प्रभावित करने में सफल रही।
अगर यह चुनाव किसी बड़ी विधानसभा या ग्रामीण इलाके का चुनाव होता, तो शायद यह मुद्दा उतना प्रभावी नहीं होता। लेकिन दिल्ली जैसे शहर में जहां नागरिक सुविधाओं का स्तर सीधा मतदाता के जीवन पर असर डालता है, वहां बीजेपी की रणनीति कारगर साबित हुई।
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