
Nirjala Ekadashi 2025: एक दिन का कठोर व्रत, जीवनभर का पुण्य!
Nirjala Ekadashi 2025: प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के अगले दिन यानी गंगा दशहरा के अगले दिन निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाता है। निर्जला एकादशी भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित है। आईए जानते हैं निर्जला एकादशी का महत्व, शुभ तिथि और पूजा विधि।
Nirjala Ekadashi 2025
सनातन धर्म में हर महीने एकादशी का व्रत रखा जाता है, हर एक एकादशी का अपना अलग-अलग महत्व और तात्पर्य होता है। उनमें से एक एकादशी निर्जला एकादशी भी है, निर्जला एकादशी ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि यानी गंगा दशहरा के अगले दिन मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित है। जो भी व्यक्ति निर्जला एकादशी का व्रत रखता है और नियम अनुसार पूजा और ध्यान करता है तो उसको सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है, यानी सिर्फ निर्जला एकादशी रखने से ही आप अन्य एकादशियों का फल प्राप्त कर सकते हैं।
Nirjala Ekadashi कब है?
प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के अगले दिन निर्जला एकादशी मनाई जाती है। दूसरी भाषा में कहे तो गंगा दशहरा के अगले दिन निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 6 जून देर रात 2:15 से शुरू होगी, और इसका समापन 7 जून की सुबह 4:47 पर होगा। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार भी 6 जून को ही निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाएगा। बात करें सनातन धर्म की तो, उदया तिथि की गणना के अनुसार ही व्रत की शुरुआत होती है, हालांकि वैष्णव जैन के लोग 7 जून को निर्जला एकादशी का व्रत रखेंगे।
Nirjala Ekadashi का महत्व
सनातन धर्म में निर्जला एकादशी का काफी महत्व होता है, क्योंकि निर्जला एकादशी का व्रत सभी एकादशियों के बराबर का लाभ देता है। निर्जला एकादशी का व्रत रखने का सबसे बड़ा महत्व यह है , कि इस व्रत रखने से सड़क की आयु बढ़ती है, तथा मृत्यु के बाद उसे व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। निर्जला एकादशी का व्रत सभी एकादशियों से सबसे बड़ा माना जाता है। निर्जला का मतलब होता है “बिना जल के” यानी इस व्रत के दौरान आप जल का ग्रहण भी नहीं कर सकते। निर्जला एकादशी के दिन सभी व्यक्ति और साधक लक्ष्मी नारायण की पूजा करते हैं और एकाग्र होकर लक्ष्मीनारायण के मित्रों का जाप करते हैं।
Nirjala Ekadashi पूजा विधि
- निर्जला एकादशी के व्रत की शुरुआत दशमी तिथि से ही हो जाती है। ऐसे में दशमी तिथि के दिन घर का सभी काम करके ही स्नान करना चाहिए।
- गंगाजल में पानी मिलाकर स्नान करें। और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। निर्जला एकादशी के दिन पीले वस्त्र पहनने की मान्यता है।
- लकड़ी की चौकी पर पीला वस्त्र बेचकर, लक्ष्मी नारायण की प्रतिमा स्थापित करें।
- पंचामृत और गंगाजल से प्रतिमा का जल अभिषेक करें।
- ध्यान लगाकर व्रत का संकल्प लें, सूर्य को जल अर्पित करें।
- भक्ति भाव से लक्ष्मी नारायण की पूजा करें।
- व्रत के दौरान पूरा दिन बिना जल के रहे, और सात्विक भोजन का ही सेवन करें।
- व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें और किसी से भी झूठ ना बोले।
- लक्ष्मी नारायण के मित्रों का 108 बार जाप करें।
- विष्णु चालीसा और लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें।
- अगर, कपूर और दीप से भगवान की आरती उतारे।
- अंत में जाने अनजाने में हुई गलतियों की माफी जरूर मांगे।
Nirjala Ekadashi व्रत कथा
यह कथा महाभारत काल की है, जब गढ़धारी भी को छोड़कर सभी पांडव एकादशी का व्रत का पालन कर रहे थे। गदाधारी भीम इस बात से चिंतित थे कि वह बिना भोजन के कैसे रहे। ऐसे में वह वेदव्यास जी के पास पहुंचे, और उनसे पूछा कि– हे पितामह! मैं पूरे दिन भूख नहीं रह सकता हूं, इसी कारण में एकादशी का व्रत नहीं रख पाता हूं, आप कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे सभी एकादशियों के बराबर का फल और पुण्य मुझे प्राप्त हो।
गदाधारी भीम की यह बात सुनकर वेदव्यास जी बोले, हे गदाधारी भीम! तुम तनिक भी चिंता मत करो। हमारे धर्म में इसका भी विधान है। तुम गिप्ट माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन निर्जला व्रत रखना, ऐसा करने से तुमको सभी एकादशियों का बराबर फल प्राप्त होगा।
वेदव्यास जी के ऐसे वचन सुनकर गदाधारी भीम अत्यंत प्रसन्न हुए और तब से ज्येष्ठ माह की एकादशी तिथि को निर्जला व्रत रखने लगे। तभी से लेकर आज तक ज्येष्ठ माह की एकादशी तिथि के दिन निर्जला व्रत रखा जाता है, इसीलिए से “भीमसेनी एकादशी” भी कहा जाता है।
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