
इस साल Holika Dahan 13 मार्च 2025 को मनाया जाएगा इसी के साथ ही 14 फरवरी को होली खेली जाएगी। हिंदू पंचांग के अनुसार फागुन मास की पूर्णिमा पर होली का दहन किया जाता है। होलिका दहन होलिका से एक दिन पहले किया जाता है इसके पीछे कई सारी पौराणिक कथाएं और मान्यता जुड़ी हुई है। आजकल बहुत सारे लोग ज्यादातर होलिका के दहन को प्रहलाद की कहानी से जोड़ते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि इसके अलावा भी शिवजी कामदेव और राजा रघु से जुड़ी कई और मान्यताएं हमारे इतिहास में जोड़ी है। लिए एक-एक करके उन सभी कहानियों से रुख करते हैं
Holika Dahan भक्त प्रहलाद की कहानी
पुरडो के अनुसार एक हिरण्यकश्यप राक्षस था जो अपने आप को सर्वश्रेष्ठ मानता था। उसकी प्रजा में सभी लोग हिरण्यकश्यप की पूजा करते थे। हिरण्यकश्यप एक अहंकारी राजा था जो अपने आप को ईश्वर से भी ऊपर मानता था। हिरने कश्यप का एक पुत्र था जिसका नाम प्रहलाद था। प्रहलाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था, हालांकि उनके पिता हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानते थे।
जब भी राजा अपने पुत्र को भगवान विष्णु की पूजा आराधना करते हुए देखा तो उसे रोकने का प्रयास करता। राजा ने कई बार अपने पुत्र को समझने की कोशिश करी कि वह उनकी पूजा ना करें बल्कि अपने स्वयं के पिता की पूजा करें, लेकिन भक्त प्रहलाद भगवान विष्णु की भक्ति में लीन था।
शायद ही दुनिया में कोई शक्ति होती जो भक्त प्रहलाद को भगवान विष्णु की पूजा करने से रोकते। भक्त प्रहलाद ने अपने पिता की बात नहीं मानी और निरंतर भगवान विष्णु की पूजा करनी शुरू करी। जब राजा ने सारे प्रयास किया फिर भी वह अपने पुत्र को नहीं मना पाया तो उसने अपने पुत्र को जान से मारने की ठान ली। पहले राजा ने अपने बेटे को पहाड़ से नीचे गिराया उसके बाद हाथी के पैर से कुचलने की भी कोशिश करी लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से हर बार प्रहलाद बज जाता था।
एक बार सारे प्रयास करने के बावजूद जब राजा को अपने सारे प्रयास व्यर्थ लगे तो उन्होंने अपनी बहन होलिका को निमंत्रण दिया। होली का अपने भाई हिरण्यकश्यप के पास आई, और आदेश का इंतजार करने लगी। राजा ने कहा कि बहन होली का तुमको वरदान है कि तुम कभी भी अग्नि में नहीं जल शक्ति इसी चीज का फायदा उठाकर तुमको एक काम करना है। राजा ने आगे कहा कि तुम प्रहलाद को अपनी गोद में बैठ कर अग्नि पर बैठ जाओ जिस कारण तुमको कुछ नहीं होगा पर मेरे बेटे की मृत्यु सफल हो जाएगी।
अपने भाई की बात मान होली का प्रहलाद को लेकर आज में बैठ गई लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से आज में प्रवेश करते ही एक चमत्कार हुआ जिसमें होली का जल गई लेकिन भक्त प्रहलाद बच गया। बस उसी दिन से यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाए जाने लगा। इसीलिए हर साल होलिका दहन के दिन एक बड़ी आग जलाई जाती है जिसमें लोग अपनी बुराइयों को भस्म करते हैं। इसी प्रकार हर साल होलिका का दहन मनाया जाता है।
Holika Dahan पर महादेव और कामदेव की कथा
एक समय की बात है जब इंद्रदेव ने कामदेव को भगवान शिव की तपस्या भंग करने का आदेश दिया था। इंद्रदेव के आदेश का पालन करने हेतु कामदेव ने इस समय वसंत को याद करते हुए अपनी माया से वसंत का प्रभाव पूरी सृष्टि पर फैलाया, कामदेव के इस प्रभाव से सारी सृष्टि सारे प्राणी मनमोहित हो गए। कामदेव के कई प्रयास करने के बाद होली के समय आखिरकार होली के समय शिव जी का ध्यान भंग हो गया।
अपने ज्ञान को भंग होता देख महादेव अत्यंत क्रुद्ध में आ गए और उन्होंने अपने प्रभाव से कामदेव को भस्म कर दिया। कामदेव को भसम करके महादेव ने एक संदेश पूरे सृष्टि पर फैलाया की ( मुंह ,इच्छा, लालच धन और मद) इन सभी को कभी भी अपने ऊपर हावी न होने दे।
इस समय से होली पर वसंत उत्सव के साथ-साथ होली जलाने की परंपरा भी शुरू हुई। इस घटना के बाद महादेव ने माता गौरी से विवाह किया जिसके कारण संपूर्ण ब्रह्मांड हर्ष उल्लास और खुशी से झूम उठा। हर तरफ रंग गुलाल उड़ने लगे जो आज तक हर होली के दिन घर-घर में मनाया जाता है।
Holika Dahan पर राजा रघु की कथा
एक बार महादेव ने ढूंढा नाम की एक राक्षसी को वरदान दिया कि उसकी मृत्यु ना ही देवता कर पाएंगे ना ही कोई मनुष्य उसकी मृत्यु ना ही अस्त्र शस्त्र से हो पाएगी और ना ही ठंड और गर्मी के कारण , उसकी मृत्यु वर्ष के कारण भी नहीं हो सकती। किंतु उसकी मृत्यु खेलते हुए बच्चों के शोर से जरूर हो सकती है। इसी डर से उसे राक्षसी ने राजा रघु के राज्य में आतंक मचाना शुरू कर दिया। वह राक्षसी औरतों और खास करके बच्चों को परेशान करने लगी। इस बात से तंग आकर गांव के लोगों ने राजा रघु के पास अपनी समस्या पहुंचाई।
इसके बाद राजा रघु ने महर्षि वशिष्ठ से इस समस्या का समाधान पूछा, महर्षि ने बताया कि इस राक्षसी को महादेव से वरदान है इसीलिए इसकी मृत्यु संभव है, लेकिन एक तरीका है जिससे इस राक्षसी की मृत्यु निश्चित है, ऋषि ने एक योजना बनाई और राजा से कहा कि , फागुन रितु का दिन एक ऐसा समय है जिस वक्त ठंडियां जाती है पर गर्मियों का आगमन होता है इस समय में अगर सभी लोग एक जगह इकट्ठा होकर आनंद से खुशी से एक साथ नाचते हैं नाचते हैं गाते हैं।
और तालियां बजाते हैं। और छोटे बच्चे शोर मचाते हैं और लड़कियां घास उपले आदि इकट्ठा कर कर मंत्र बोलकर आग जलते हैं और अग्नि की परिक्रमा करते हैं और ओम का उच्चारण करते हैं ऐसा करने से उसे राक्षसी का अंत हो जाएगा। महर्षि के कहने पर पूरा राज्य ऐसा ही करता है और ढूंढा नाम की राक्षसी का अंत हो जाता है। उसी दिन से हर साल इसी तरह होली का का दहन होता है और अगले दिन सभी लोग खुशी से नाचते हैं गाते हैं और रंग उड़ाते हैं।
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