
Rana Sanga बीते 21 मार्च को समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन द्वारा राज्यसभा में एक विवादित टिप्पणी की गई जो राणा सांगा से संबंधित थी। उनके टिप्पणी के बाद वह विवादों में घिरे हुए हैं और लोग उनका विरोध कर रहे हैं। जानेंगे इस पूरे मामले को लेकिन उससे पहले जान लेते हैं कि आखिर राणा सांगा कौन थे और उनको लेकर क्या विवाद चल रहा है?
कौन थे Rana Sanga?
राणा सांगा मेवाड़ के एक प्रसिद्ध शासक थे। जिनका नाम इतिहास में सुनहरे अक्षरों से लिखा गया है। वह अपनी वीरता और साहस के लिए जाने जाते हैं। इतिहास में वह एक महत्वपूर्ण और वीर योद्धा के रूप में जाने जाते हैं। राणा सांगा का जन्म 1484 ई में हुआ था और वह मेवाड़ के राणा रायमल के पुत्र थे। राणा सांगा का असली नाम संग्राम सिंह था।
उन्होंने 1509 से लेकर 1527 ई तक शासन किया उनका इतिहास वीरता, साहस और नेतृत्व की मिसाल को प्रत्येक रूप से दर्शाता है। उन्होंने मेवाड़ की सत्ता को मजबूती देने में अपनी एक अहम भूमिका निभाई है और उन्होंने कई युद्ध में भी भाग लिया। राणा सांगा ने अपने जीवन काल में कई युद्ध में सफलता प्राप्त की है और उनके नेतृत्व में मेवाड़ में कई समृद्धियां भी हासिल की।
Rana Sanga और बाबर के मध्य युद्ध संघर्ष
राणा सांगा के जीवन का सबसे प्रसिद्ध और चर्चित संघर्ष बाबर के खिलाफ था। बाबर ने भारत में दिल्ली की सल्तनत को स्थापित किया था और उसकी नजर मेवाड़ पर भी थी। राणा सांगा और बाबर ने एक दूसरे के खिलाफ पहला युद्ध 21 फरवरी 1527 को बयाना में लड़ा। इस युद्ध में बाबर को हार मिली। करारी हार मिलने के बाद बाबर आगरा वापस लौट गया। इस युद्ध के बारे में बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में ही जिक्र किया है।
बयाना की हार के बाद 16 मार्च 1527 को खानवा के मैदान में राणा सांगा और बाबर एक दूसरे के सामने फिर से युद्ध के लिए आते हैं और इस युद्ध में बाबर द्वारा तोप और बंदूको का इस्तेमाल भी किया गया।
जबकि राणा सांगा की सेना तलवारों से ही युद्ध लड़ रही थी। यह युद्ध भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण युद्ध था। क्योंकि राणा सांगा ने बाबर के साम्राज्य को रोकने के लिए काफी संघर्ष किया था। इस युद्ध के दौरान राणा सांगा की एक आंख, एक हाथ और एक पैर जख्मी हो गए। उनके शरीर पर लगभग 80 से ज्यादा चोटे आई थी। इस युद्ध में राणा सांगा की हार हुई लेकिन उनकी वीरता और साहस को आज भी याद किया जाता है और उनका यह संघर्ष इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है।
Rana Sanga की मृत्यु
राणा सांगा की कौशलता, सैन्य ताकत और रणनीतिक कुशलता भी उल्लेखनीय थी। उन्होंने न केवल मेवाड़ के क्षेत्रीय विस्तार को बढ़ाया बल्कि मेवाड़ के सैन्य बल, सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से भी उन्होंने मेवाड़ को बहुत बदल दिया। वह एक योग्य शासक थे। राणा सांगा की प्रमुख विशेषता उनकी जुझारु और संघर्षशील भावना थी। उनके संघर्षों ने इस बात का प्रमाण दिया कि वह न केवल एक समर्पित शासक थे बल्कि एक महान योद्धा भी थे। राणा सांगा की मृत्यु 1528 ई में हो गई लेकिन उनका नाम आज भी इतिहास में एक वीर और साहसी राजा के रूप में जीवित है।
Rana Sanga को लेकर क्या विवाद है
दरअसल, बीते 21 मार्च को समाजवादी पार्टी के सांसद ने राज्यसभा में मेवाड़ के शासक राणा सांगा को लेकर एक विवादित टिप्पणी कर दी। सपा सांसद रामजीलाल सुमन ने राणा सांगा को “गद्दार” कहा था। उन्होंने कहा कि “बाबर राणा सांगा के नियंत्रण पर ही भारत आया था। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है। मेरा इरादा किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का नहीं था। हर बार कहा जाता है कि भारत के मुसलमान के डीएनए में बाबर है।
भारत के मुसलमान मोहम्मद साहब को अपना आदर्श मानते हैं और सूफी परंपरा के साथ जीते हैं। मेरा किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कोई इरादा नहीं है। सपा सांसद की बयान के बाद अब उनका जमकर विरोध किया जा रहा है।
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