zakir hussain: मशहूर तबला वादक, ने 73 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कहा
मशहूर तबला वादक zakir hussain ने 73 वर्ष की उम्र में इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के कारण दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी संगीत यात्रा ने उन्हें न केवल भारत में, बल्कि दुनिया भर में एक प्रतिष्ठित कलाकार बना दिया था। उनका योगदान भारतीय संगीत और फिल्म इंडस्ट्री में अनमोल रहेगा।
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Toggleइडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस से जूझ रहे थे zakir hussain
मशहूर तबला वादक ज़ाकिर हुसैन ने 73 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया। डॉक्टर्स के अनुसार उनकी मृत्यु दिल और फेफड़ों की बीमारियों के कारण हुई, जिसके बाद उन्हें अमेरिकी शहर सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल के आईसीयू में भर्ती किया गया था। ज़ाकिर हुसैन अमेरिका में रह रहे थे और उन्हें रक्तचाप की समस्या के साथ-साथ इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस जैसी गंभीर बीमारी का भी सामना करना पड़ा था।
आईये जानते हैं कौन थे zakir hussain
ज़ाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को हुआ था। उनका बचपन मुंबई में बीता, जहाँ उन्होंने सेंट माइकल हाई स्कूल से अपनी पढ़ाई की और सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। 12 साल की उम्र से ही ज़ाकिर हुसैन ने संगीत की दुनिया में अपने तबले की आवाज़ को बिखेरना शुरू कर दिया था।
zakir hussain का करियर
1973 में ज़ाकिर हुसैन का पहला एलबम लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड आया था, और इसके बाद तो उन्होंने अपने तबले की आवाज़ को दुनिया भर में फैलाने का संकल्प लिया। 1979 से लेकर 2007 तक, ज़ाकिर हुसैन ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय समारोहों और एलबमों में अपने तबले का दम दिखाया। वे भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व के विभिन्न हिस्सों में भी समान रूप से प्रसिद्ध हैं।
ज़ाकिर हुसैन को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ऑल-स्टार ग्लोबल कॉन्सर्ट में भाग लेने के लिए व्हाइट हाउस में आमंत्रित किया था। इसके अलावा, वे तबला वादक होने के साथ-साथ अभिनेता भी थे और उन्होंने 12 फिल्मों में अभिनय किया था।
फ़िल्मों में किरदार
ज़ाकिर हुसैन अपनी नकारात्मक और मज़ेदार भूमिकाओं के लिए जाने जाते हैं। उनकी सबसे मशहूर भूमिकाएं रामगोपाल वर्मा की 2005 की फिल्म सरकार में राशिद का किरदार और श्रीराम राघवन की 2007 की फिल्म जॉनी गद्दार में शार्दुल का रोल थीं। इसके अलावा, रोहित शेट्टी की सिंघम रिटर्न्स में भी उन्होंने गद्दार का किरदार निभाया था।
पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित किया गया
1988 में जब ज़ाकिर हुसैन को पद्म श्री का पुरस्कार मिला, तब वह महज 37 वर्ष के थे और इस उम्र में यह पुरस्कार पाने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे। 2002 में संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। ज़ाकिर हुसैन को 1992 और 2009 में संगीत का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार, ग्रैमी अवार्ड भी मिला। 22 मार्च 2023 को उन्हें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
बॉन्डिंग और सहयोग
ज़ाकिर हुसैन ने कई पश्चिमी संगीतकारों के साथ संगत की। प्रसिद्ध पॉप बैंड The Beatles के साथ उनकी साझेदारी उल्लेखनीय रही है। इसके अलावा, उन्होंने 1971 में अमेरिकी साइकेड बैंड Shanti के साथ भी रिकॉर्डिंग की थी। 1975 में उन्होंने जॉन मैकलॉघलिन, एल शंकर, टीएच ‘विक्कू’ विनायकम और आर. राघवन के साथ बैंड Shakti में काम किया। 1970 के अंत में इस बैंड को भंग कर दिया गया था, लेकिन कुछ साल बाद इसे नए सदस्यों के साथ Remember Shakti नाम से फिर से शुरू किया गया।
zakir hussain की पहली कमाई
आपको जानकर हैरानी होगी कि ज़ाकिर हुसैन की पहली कमाई सिर्फ 5 रुपये थी। उस्ताद ज़ाकिर हुसैन को तबला बजाना बहुत पसंद था। जब उनके हाथ में कोई बर्तन आता, तो वह भी उसे बजाकर धुन निकालने लगते थे।
जब वह 12 साल के थे, तो एक कार्यक्रम में अपने पिता के साथ गए। वहां उनकी मुलाकात पंडित रविशंकर, उस्ताद अली अकबर खान, बिस्मिल्लाह खान, पंडित शांता प्रसाद और पंडित किशन महाराज से हुई। स्टेज पर जब ज़ाकिर अपने पिता के साथ परफॉर्म कर रहे थे, तो लोग हैरान रह गए। उस परफॉर्मेंस के बाद उन्हें 5 रुपये का इनाम मिला।
zakir hussain का व्यक्तिगत जीवन
ज़ाकिर हुसैन की व्यक्तिगत जिंदगी भी बहुत दिलचस्प रही। उन्होंने 1978 में एंटोनिया मिनेकोल से शादी की, जो एक प्रतिभाशाली महिला थीं और उनका संगीत में गहरा रुचि था। शादी के बाद, ज़ाकिर हुसैन और एंटोनिया मिनेकोल दो बेटियों के माता-पिता बने, जिनका नाम अनीसा कुरैशी और इसाबेला कुरैशी है।
अनीसा और इसाबेला भी अपने माता-पिता की तरह कला और संस्कृति में रुचि रखती हैं। ज़ाकिर हुसैन अपने परिवार के साथ समय बिताना बहुत पसंद करते थे और उन्हें एक आदर्श पिता और पति माना जाता है। उनका परिवार उनकी सफलता और संगीत के प्रति समर्पण का एक बड़ा हिस्सा रहा है।
निष्कर्ष
ज़ाकिर हुसैन की विरासत संगीत और कला के क्षेत्र में अमूल्य रहेगी। उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। उन्होंने अपनी संगीत यात्रा से न केवल भारतीय संगीत की धरोहर को समृद्ध किया, बल्कि भारतीय कला और संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। ज़ाकिर हुसैन का जीवन हमें समर्पण, परिश्रम और कला के प्रति श्रद्धा का पाठ पढ़ाता है।
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