
Kulman Ghising Nepal PM: सुशीला कार्की हटीं, अब कुलमन घिसिंग पर टिकी नेपाल की किस्मत
Kulman Ghising Nepal PM: नेपाल इन दिनों गहरी राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर रहा है। सड़कों पर युवा प्रदर्शन कर रहे हैं, सरकार पर सवाल उठ रहे हैं और राजधानी काठमांडू का माहौल अस्थिर है। ऐसे समय में देश के सामने सबसे बड़ा सवाल है कि अंतरिम सरकार की बागडोर किसके हाथ में होगी।
गुरुवार सुबह तक यह माना जा रहा था कि नेपाल की पहली महिला चीफ़ जस्टिस रह चुकीं सुशीला कार्की अंतरिम प्रधानमंत्री बनेंगी। लेकिन अचानक हालात बदले और दोपहर तक उनके नाम को दौड़ से हटा दिया गया। अब इस रेस में सबसे आगे आ गए हैं कुलमन घिसिंग, जिनका नाम युवाओं ने सबसे ज़ोरदार तरीके से रखा है।
कौन हैं कुलमन घिसिंग?
कुलमन घिसिंग कोई पेशेवर राजनेता नहीं हैं। वे एक इंजीनियर और प्रशासक रहे हैं, जिन्हें नेपाल में “बिजली का मसीहा” भी कहा जाता है। 54 वर्षीय घिसिंग नेपाल विद्युत प्राधिकरण (NEA) के पूर्व प्रमुख रह चुके हैं।
नेपाल लंबे समय तक बिजली संकट से जूझता रहा। काठमांडू घाटी और अन्य शहरों में घंटों-घंटों बिजली कटौती आम बात थी। लेकिन कुलमन घिसिंग ने अपने कार्यकाल में इस समस्या को लगभग खत्म कर दिया। उन्होंने बिजली उत्पादन और वितरण को दुरुस्त किया, चोरी रोकने के लिए सख्ती की और ऊर्जा क्षेत्र में कई सुधार लागू किए।
इसी वजह से वे जनता के बीच ईमानदार और काबिल प्रशासक की छवि बनाने में सफल रहे।
भारत से है खास नाता
कुलमन घिसिंग का भारत से भी गहरा रिश्ता है। उनका जन्म 1970 में नेपाल के रामेछाप जिले में हुआ। शुरुआती पढ़ाई वहीं से की, लेकिन इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए वे भारत आए। जमशेदपुर स्थित रीजनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से उन्होंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की।
भारत से सीखी तकनीकी और प्रबंधन की बारीकियों को उन्होंने नेपाल लौटकर काम में लगाया। शायद यही वजह है कि आज नेपाल के युवा उन्हें एक प्रोफेशनल, विज़नरी और ईमानदार नेता के रूप में देख रहे हैं, जो राजनीति में नई हवा ला सकते हैं।
सुशीला कार्की क्यों पीछे हटीं?
सुशीला कार्की नेपाल की राजनीति और न्यायपालिका दोनों में बड़ा नाम रही हैं। उन्हें शुरू में अंतरिम प्रधानमंत्री के तौर पर सबसे मजबूत दावेदार माना जा रहा था। लेकिन उनकी उम्र और व्यक्तिगत कारणों की वजह से उन्होंने इस पद की रेस से खुद को अलग कर लिया।
यही कारण है कि अब पूरा फोकस कुलमन घिसिंग पर आ गया है। गुरुवार सुबह तक जो तस्वीर अलग थी, दोपहर तक उसमें बड़ा बदलाव दिखा और युवाओं ने कुलमन का नाम आगे बढ़ा दिया।
युवाओं का भरोसा
नेपाल में इस वक्त जो आंदोलन चल रहा है, उसकी अगुवाई जनरेशन ज़ेड यानी युवा कर रहे हैं। ये वही पीढ़ी है जिसने इंटरनेट, सोशल मीडिया और डिजिटल दौर में आंखें खोलीं। इन्हीं युवाओं ने साफ़ कहा कि उन्हें राजनीति में “पुराने चेहरे” नहीं, बल्कि एक नया और ईमानदार नेतृत्व चाहिए।
इसी सोच के तहत उन्होंने कुलमन घिसिंग का नाम प्रस्तावित किया। युवाओं का मानना है कि राजनीति को अब ऐसे लोगों की ज़रूरत है जो भ्रष्टाचार से दूर रहें और जनता की असली समस्याओं का हल निकालें।
कुलमन की चुनौतियाँ
अगर कुलमन घिसिंग वास्तव में नेपाल के अंतरिम प्रधानमंत्री बनते हैं तो उनके सामने चुनौतियाँ कम नहीं होंगी।
- राजनीतिक स्थिरता: नेपाल की राजनीति बार-बार अस्थिर होती रही है। गठबंधन सरकारें टूटना और बार-बार चुनाव होना यहां आम बात है।
- आर्थिक संकट: नेपाल की अर्थव्यवस्था इस वक्त दबाव में है। बेरोज़गारी बढ़ रही है और विदेशी निवेश घट रहा है।
- युवाओं की उम्मीदें: जो युवा आज उन्हें समर्थन दे रहे हैं, उनकी अपेक्षाएँ बहुत ऊँची हैं। यदि वे तुरंत बदलाव नहीं ला पाए, तो निराशा भी फैल सकती है।
क्यों अहम है यह बदलाव?
नेपाल की राजनीति में कुलमन घिसिंग जैसे चेहरे का आगे आना इस बात का संकेत है कि अब जनता और खासकर युवा पारंपरिक नेताओं से ऊब चुके हैं। वे ऐसे लोगों को मौका देना चाहते हैं जिनका ट्रैक रिकॉर्ड साफ हो और जिनके पास काम करने का विज़न हो।
घिसिंग ने अपने काम से यह भरोसा जीत लिया है कि वे मुश्किल हालात में भी समाधान ढूंढ सकते हैं। यही कारण है कि आज उन्हें अंतरिम प्रधानमंत्री पद का सबसे बड़ा दावेदार माना जा रहा है।
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