Supreme Court Big Verdict: राज्यपाल अब विधानसभा से पास Bills को पेंडिंग नहीं रख सकते — राष्ट्रपति तक भेजने या लौटाने का विकल्प ही मान्य
Supreme Court Big Verdict: भारत के संविधान और संघीय ढांचे से जुड़ा एक बेहद अहम फैसला Supreme Court ने गुरुवार को सुनाया। अदालत ने पहली बार स्पष्ट रूप से कहा कि राज्यपाल (Governors) विधानसभा में पारित किसी Bill को अनिश्चितकाल तक अपने पास रोकर नहीं रख सकते।
राज्यपाल के अधिकार अब केवल तीन विकल्पों तक सीमित हैं—
- Assent देना,
- Bill को वापस भेजना,
- या उसे President के पास Reserve करना।
कोर्ट ने यह भी कहा कि Bills की मंजूरी के लिए कोई “Statutory Deadline” तय करना संभव नहीं है, लेकिन यदि Governor अनुचित देरी करते हैं, तो Supreme Court उचित हस्तक्षेप करेगा।
यह फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले कई महीनों से कई राज्य—Tamil Nadu, West Bengal, Kerala, Karnataka, Telangana, Punjab और Himachal Pradesh—लगातार शिकायत कर रहे थे कि राज्यपाल जानबूझकर Bills रोक रहे हैं और शासन व्यवस्था बाधित हो रही है।
5-जजों की Constitution Bench का बड़ा फैसला
इस मामले की सुनवाई Chief Justice BR Gavai की अध्यक्षता वाली 5-जजों की Bench ने की, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंद्रचूड़कर शामिल थे।
Bench ने दो-टूक कहा कि—
“Governor एक निर्वाचित सरकार की विधायी इच्छा को अनिश्चित समय तक रोककर नहीं रख सकते। ऐसा करना संविधान के बुनियादी ढांचे के विपरीत है।”
Tamil Nadu-Governor विवाद से उठी आग — और Supreme Court तक पहुँची
यह पूरा मामला तब उभरा जब Tamil Nadu Governor ने कई Bills महीनों तक अपनी मंजूरी के लिए लंबित रखे।
इन Bills में शिक्षा, नियुक्तियों, विश्वविद्यालय कानून, मेडिकल एडमिशन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे शामिल थे।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल 2025 को अपने आदेश में कहा था कि—
- Governor के पास Veto Power नहीं है,
- और यदि Governors कोई Bill राष्ट्रपति को भेजते हैं, तो President को 3 महीने में निर्णय देना होगा।
11 अप्रैल को यह आदेश सार्वजनिक हुआ, जिसके बाद President Droupadi Murmu ने Supreme Court के समक्ष Article 143(1) के तहत एक Presidential Reference दाखिल किया और 14 गंभीर सवाल पूछे।
यहीं से यह मामला एक सामान्य राज्यपाल-विधानसभा विवाद से बढ़कर पूरा संवैधानिक मसला बन गया।
Presidential Reference: Article 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से राय क्यों मांगी गई?
Aaj Tak और अन्य स्रोतों की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति ने Supreme Court से पूछा कि—
- क्या Supreme Court Governor और President के लिए Bills की समय-सीमा तय कर सकती है?
- क्या Article 200 और Article 201 के तहत किसी प्रकार की “mandatory timeline” लागू की जा सकती है?
- क्या Governor द्वारा महीनों तक Bills रोकना संविधान के विरुद्ध माना जाएगा?
- और क्या Court इस प्रक्रिया की Judicial Review कर सकती है?
सुप्रीम कोर्ट ने Presidential Reference पर सुनवाई करते हुए कहा—
“हम यहां Appeal नहीं सुन रहे, केवल Advisory Opinion दे रहे हैं। लेकिन लोकतांत्रिक ढांचे में Bill पर अनिश्चित देरी स्वीकार नहीं की जा सकती।”
सुनवाई के दौरान क्या-क्या हुआ? — कोर्ट की 9 प्रमुख कार्यवाही
1. 10 सितंबर – केंद्र का पक्ष
Solicitor General Tushar Mehta ने कहा कि 1970 से अब तक केवल 20 Bills ही राष्ट्रपति के पास लंबित रहे हैं और 90% Bills एक महीने में ही Clear हो जाते हैं।
CJI ने इस तर्क को अधूरा बताते हुए कहा कि केवल आंकड़े पूरी तस्वीर नहीं बताते।
2. 9 सितंबर – Karnataka सरकार की दलील
कर्नाटक ने कहा कि Governor और President “Nominal Heads” होते हैं और उनकी संतुष्टि वास्तव में Council of Ministers की संतुष्टि होती है।
3. 3 सितंबर – West Bengal का तर्क
TMC सरकार ने कहा—Bill जनता की इच्छा है, Governor उस पर रोक नहीं लगा सकते।
Bill को तुरंत Dispose करना Governor की जिम्मेदारी है।
4. 2 सितंबर – Bill पर विचार Governor/President का व्यक्तिगत कार्य नहीं
Tamil Nadu और Bengal ने कहा—Governor बिलों का मूल्यांकन नहीं कर सकते, यह Legislative Function और Judicial Domain है।
5. 28 अगस्त – केंद्र बोला: राज्य Article 32 नहीं लगा सकते
केंद्र ने कहा कि Fundamental Rights राज्यों के लिए नहीं होते।
राज्य Governor/President के खिलाफ Supreme Court नहीं आ सकते।
6. 26 अगस्त – BJP शासित राज्यों की दलील
इन राज्यों का कहना था—Court किसी भी स्थिति में Governor के लिए Deadline Fix नहीं कर सकती।
CJI ने तीखी टिप्पणी दी—“अगर कोई व्यक्ति 5 साल Bill रोककर रखे, तो क्या Court चुप बैठी रहे?”
7. 21 अगस्त – केंद्र की सलाह: बातचीत से विवाद सुलझाएं
केंद्र ने कहा—राज्यों को Court नहीं बल्कि राजनीतिक संवाद का रास्ता अपनाना चाहिए।
8. 20 अगस्त – SC ने दोहराया: सरकार Governors की मर्जी पर नहीं चल सकती
Court ने कहा—दूसरी बार भेजे गए Bill को Governor राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकते।
9. 19 अगस्त – AG की दलील
Attorney General ने कहा—Court Constitution को पुनर्लिख नहीं सकती।
Court ने कहा—हम संविधान की रक्षा कर रहे हैं, नया नहीं लिख रहे।
Supreme Court का Final Outcome — क्या बदला?
- Governor अब किसी Bill को अनिश्चितकाल तक Pending नहीं रख पाएंगे।
- Court ने कहा—Delay “Arbitrary” है तो Judiciary हस्तक्षेप करेगी।
- Approval Deadlines Court नहीं तय करेगी, लेकिन “undue delay” की निगरानी होगी।
- Presidential Reference पर Court ने कहा—हम Advisory Opinion देंगे, Appeal नहीं सुनेंगे।
- Legislative Supremacy को मजबूत किया गया।
Supreme Court का दूसरा बड़ा फैसला — पड़ोसियों की लड़ाई पर टिप्पणी
इसी दिन एक अन्य निर्णय में Court ने कहा—
- पड़ोसियों में झगड़ा सामान्य है।
- ऐसी बहस या धक्का-मुक्की को IPC 306 (Suicide Abetment) नहीं माना जा सकता।
- Karnataka High Court का 3 साल की सजा वाला फैसला रद्द।
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