
INDIA Alliance: संसद सत्र से पहले बिखरा विपक्ष: AAP-TMC अलग, INDIA गठबंधन कमजोर
INDIA Alliance: 21 जुलाई 2025 से संसद का मॉनसून सत्र शुरू होने जा रहा है। इससे पहले सरकार और विपक्ष दोनों ही अपनी रणनीति बनाने में जुटे हैं। विपक्ष इस बार “ऑपरेशन सिंदूर” और “बिहार वोटर लिस्ट रिवीजन” जैसे मुद्दों को लेकर सरकार पर हमलावर होना चाहता है। इसके लिए इंडिया गठबंधन की शनिवार शाम 7 बजे ऑनलाइन बैठक भी बुलाई गई है।
लेकिन संसद सत्र की तैयारी से पहले ही विपक्ष के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। आम आदमी पार्टी (AAP) और तृणमूल कांग्रेस (TMC) जैसी अहम पार्टियों का रुख इस बार अलग नजर आ रहा है।
आप का फैसला: गठबंधन से दूरी
आम आदमी पार्टी ने साफ कर दिया है कि वह इंडिया गठबंधन की इस बैठक में हिस्सा नहीं लेगी। पार्टी ने कहा है कि इंडिया गठबंधन लोकसभा चुनाव तक सीमित था। अब पार्टी इसमें हिस्सा नहीं लेगी क्योंकि वो कांग्रेस के साथ मंच साझा नहीं करना चाहती।
दरअसल, ‘आप’ इस समय गुजरात, राजस्थान और अन्य बीजेपी शासित राज्यों में खुद को मजबूत करने की कोशिश कर रही है। उसकी रणनीति कांग्रेस को किनारे कर सीधे बीजेपी से मुकाबला करने की है। दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस के साथ AAP के रिश्ते अच्छे नहीं रहे हैं।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भले ही कोई सीट न जीती हो, लेकिन AAP मानती है कि उसका नुकसान कांग्रेस की वजह से हुआ। पंजाब में भी कांग्रेस और AAP की सीधी टक्कर थी, जहां लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन कमजोर रहा। इसीलिए AAP अब खुद को विपक्षी गठबंधन से अलग दिखाना चाहती है।
ममता बनर्जी की रणनीति: बंगाल प्राथमिकता में
तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने शुरुआत में इस बैठक से किनारा कर लिया था। उनका तर्क था कि 21 जुलाई को ‘शहीद दिवस’ है, जो बंगाल की राजनीति में बड़ा दिन माना जाता है। यह दिन सिंगुर आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले कार्यकर्ताओं की याद में मनाया जाता है।
लेकिन राजनीति जानकार मानते हैं कि इसकी असली वजह बंगाल में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव हैं। टीएमसी नहीं चाहती कि वो कांग्रेस या वाम दलों के साथ एक मंच पर दिखे, क्योंकि बंगाल की राजनीति में कांग्रेस और लेफ्ट अब भी उनके विरोधी हैं। ममता जानती हैं कि केंद्र की राजनीति भले ही विपक्षी एकता की मांग करती हो, लेकिन बंगाल में उन्हें अपने अस्तित्व की रक्षा करनी है।
हालांकि टीएमसी के नेता अभिषेक बनर्जी अब इस बैठक में ऑनलाइन शामिल होने की बात कह रहे हैं, लेकिन इससे विपक्ष की एकता को बहुत बल नहीं मिलेगा।
बिहार का असर: नीतीश और बीजेपी का पलटवार
बिहार में भी वोटर लिस्ट स्पेशल रिवीजन का मुद्दा गरमाया हुआ है। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि वोटर लिस्ट में भारी गड़बड़ी की जा रही है ताकि विधानसभा चुनाव से पहले ध्रुवीकरण किया जा सके।
लेकिन सवाल ये है कि जब खुद विपक्षी दल एकजुट नहीं हैं, तो क्या वे इस मुद्दे पर सरकार को संसद में घेर पाएंगे?
बिहार में गठबंधन टूट चुका है और नीतीश कुमार फिर से एनडीए के साथ हैं। इससे कांग्रेस, राजद और अन्य विपक्षी दलों की रणनीति कमजोर हो गई है। ऐसे में संसद में विपक्ष के पास मुद्दे तो हैं, लेकिन उन्हें उठाने के लिए एकता नहीं है।
इंडिया गठबंधन की सुस्त चाल
लोकसभा चुनाव के बाद से इंडिया गठबंधन की गतिविधियां बहुत धीमी हो गई हैं। सिर्फ एक बार जून में बैठक हुई थी, जिसमें ऑपरेशन सिंदूर के मुद्दे पर संसद सत्र बुलाने की मांग की गई थी। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला तक कह चुके हैं कि इंडिया गठबंधन को भंग कर देना चाहिए क्योंकि इसमें अब कोई गंभीरता नहीं बची है।
राहुल गांधी ने इस बार विपक्षी दलों से सीधे संपर्क किया है ताकि बैठक को सफल बनाया जा सके, लेकिन जिस तरह से आम आदमी पार्टी और टीएमसी ने दूरी बना ली है, उससे उनके प्रयासों को झटका लगा है।
क्या कहती है सरकार?
सरकार इस पूरे घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए है। ऑपरेशन सिंदूर (जिसमें बीजेपी नेताओं के खिलाफ कथित साजिश के आरोप हैं) और बिहार वोटर लिस्ट जैसे मुद्दों पर सरकार पहले ही सफाई दे चुकी है। लेकिन अगर विपक्ष मजबूत होकर संसद में इन पर हमलावर होता, तो सरकार पर दबाव बनता। अब जब विपक्ष ही बिखरा हुआ है, तो सरकार के लिए संसद सत्र ज्यादा चुनौतीपूर्ण नहीं रह जाएगा।
विपक्ष के सामने एकजुटता की सबसे बड़ी चुनौती
संसद का मॉनसून सत्र विपक्ष के लिए सरकार को घेरने का मौका था। लेकिन आपसी मतभेद, राज्य आधारित रणनीति और व्यक्तिगत राजनीतिक फायदे विपक्ष की एकता को कमजोर कर रहे हैं।
आप और टीएमसी जैसी अहम पार्टियों का हटना बताता है कि इंडिया गठबंधन के सामने बड़ी चुनौती है। जब तक विपक्ष साझा एजेंडा और आपसी भरोसे के साथ नहीं चलेगा, तब तक संसद में सरकार को टक्कर देना मुश्किल होगा।
अगर विपक्ष खुद को “एक विकल्प” के रूप में पेश करना चाहता है, तो उसे पहले खुद को एकजुट करना होगा — वरना जनता भी सवाल करेगी: “जो साथ नहीं चल सकते, वो देश कैसे चलाएंगे?”
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