Waqf Amendment Act 2025: वक्फ़ कानून पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, जानिए क्या बदला और क्या बरकरार?
Waqf Amendment Act 2025: भारत में वक्फ़ को लेकर लंबे समय से विवाद और चर्चाएं चलती रही हैं। वक्फ़ यानी ऐसी संपत्ति जो किसी धार्मिक या चैरिटी काम के लिए हमेशा के लिए दान कर दी जाती है। इसका प्रबंधन और देखरेख वक्फ़ बोर्ड करता है। 1995 का वक्फ़ कानून इसी काम के लिए बनाया गया था।
लेकिन 2025 में मोदी सरकार ने इस कानून में बड़े बदलाव किए और Waqf Amendment Act 2025 संसद से पास कर दिया। सरकार का कहना था कि यह कानून पारदर्शिता और जवाबदेही लाएगा, लेकिन मुस्लिम समुदाय और कई वकीलों ने इसे धार्मिक अधिकारों पर हमला बताया और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
15 सितंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून पर सुनवाई करते हुए कई प्रावधानों पर रोक लगा दी और कुछ को बरकरार रखा। आइए आसान भाषा में समझते हैं कि अदालत ने क्या कहा और इसका आम लोगों पर क्या असर होगा।
क्या वक्फ बनाने के लिए 5 साल तक इस्लाम का अभ्यास ज़रूरी है?
नए कानून में लिखा था कि कोई भी शख्स वक्फ़ बोर्ड का सदस्य तभी बन सकता है जब वह कम से कम 5 साल से इस्लाम धर्म का पालन कर रहा हो।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगाते हुए कहा – “ये शर्त मनमानी है। कौन तय करेगा कि किसी ने सच में 5 साल तक इस्लाम का अभ्यास किया या नहीं?”
अब जब तक सरकार कोई स्पष्ट नियम नहीं बनाती, यह प्रावधान लागू नहीं होगा। इस फैसले से समुदाय को बड़ी राहत मिली है क्योंकि इससे मनमानी और भेदभाव की आशंका थी।
क्या कलेक्टर तय करेगा कौन सी ज़मीन वक्फ़ है और कौन नहीं?
नए एक्ट के मुताबिक, अगर किसी संपत्ति पर विवाद हो कि वह वक्फ़ है या सरकारी, तो फैसला जिला कलेक्टर करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान पर भी रोक लगा दी। अदालत ने कहा कि यह काम कोर्ट या ट्रिब्यूनल का है, किसी सरकारी अफसर का नहीं। इसे separation of powers यानी “शक्तियों के बंटवारे” के सिद्धांत के खिलाफ माना गया।
यानि अब कोई कलेक्टर सीधे आपकी ज़मीन को वक्फ़ घोषित नहीं कर पाएगा। यह एक बड़ा फैसला है क्योंकि इससे अफसरों की मनमानी पर लगाम लगेगी।
क्या वक्फ़ बोर्ड में नॉन-मुस्लिम बहुमत में होंगे?
कानून में कहा गया था कि वक्फ़ बोर्ड और वक्फ़ काउंसिल में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या बढ़ाई जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने इस पर लिमिट लगा दी। अब:
- स्टेट वक्फ़ बोर्ड में 11 में से ज़्यादा से ज़्यादा 3 गैर-मुस्लिम होंगे।
- सेंट्रल वक्फ़ काउंसिल में 22 में से ज़्यादा से ज़्यादा 4 गैर-मुस्लिम होंगे।
साथ ही कोर्ट ने कहा कि जहाँ संभव हो, वक्फ़ बोर्ड का CEO मुस्लिम होना चाहिए। इस हिस्से पर कोर्ट ने कोई रोक नहीं लगाई।
वक्फ़ बाय यूजर का क्या हुआ?
पहले के कानून में “वक्फ़ बाय यूजर” का प्रावधान था। यानी अगर किसी संपत्ति पर लंबे समय तक वक्फ़ का इस्तेमाल हो रहा है, तो उसे वक्फ़ माना जाएगा, चाहे कागज़ात हों या न हों।
नए कानून ने इस व्यवस्था को खत्म कर दिया था, और सुप्रीम कोर्ट ने इसे बरकरार रखा। यानी अब सिर्फ इस्तेमाल के आधार पर कोई भी ज़मीन वक्फ़ नहीं मानी जाएगी।
और कौन से प्रावधान बने रहेंगे?
- लिमिटेशन एक्ट और रजिस्ट्रेशन की शर्तें पहले की तरह लागू रहेंगी।
- वक्फ़ संपत्ति का सही रिकॉर्ड रखना ज़रूरी होगा।
इसका मतलब यह है कि वक्फ़ संस्थानों पर प्रशासनिक जिम्मेदारी और बढ़ेगी।
याचिकाकर्ताओं की दलील क्या थी?
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि:
- 5 साल वाली शर्त मनमानी है और धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करती है।
- कलेक्टर को इतनी ताकत देना संविधान के खिलाफ है।
- वक्फ़ बोर्ड में मुस्लिम प्रतिनिधित्व घटाने से धार्मिक पहचान को चोट पहुँचती है।
कोर्ट ने इन दलीलों को काफी हद तक माना और सरकार के कई प्रावधानों पर रोक लगा दी।
अब आगे क्या होगा?
यह सिर्फ अंतरिम फैसला है। अंतिम सुनवाई अभी बाकी है। लेकिन फिलहाल यह फैसला मुस्लिम समुदाय के लिए बड़ी राहत माना जा रहा है।
अब न तो कोई कलेक्टर मनमाने ढंग से ज़मीन को वक्फ़ घोषित कर पाएगा और न ही बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की संख्या बढ़ाकर मुस्लिम प्रतिनिधित्व को कमजोर किया जा सकेगा।
सरकार को अब स्पष्ट नियम बनाने होंगे और यह देखना होगा कि कानून पारदर्शिता भी लाए और धार्मिक अधिकारों पर भी चोट न हो।
राजनीति में गर्मी
इस फैसले के बाद राजनीतिक बयानबाज़ी भी तेज हो गई है। कांग्रेस और विपक्षी दल कह रहे हैं कि मोदी सरकार ने इस कानून से मुस्लिमों को निशाना बनाया। वहीं बीजेपी का कहना है कि यह सुधार पारदर्शिता और भ्रष्टाचार रोकने के लिए ज़रूरी है।
स्पष्ट है कि वक्फ़ का यह मुद्दा सिर्फ कानूनी ही नहीं बल्कि राजनीतिक बहस का भी केंद्र बन गया है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ़ संशोधन कानून 2025 की कई धाराओं पर फिलहाल “ब्रेक” लगा दी है। कुछ प्रावधान जैसे वक्फ़ बाय यूजर खत्म होना और रजिस्ट्रेशन की शर्तें अभी भी लागू रहेंगी।
यह फैसला समुदाय को राहत भी देता है और सरकार को चेतावनी भी कि कानून बनाते वक्त धार्मिक संवेदनशीलता और संविधान के मूल सिद्धांतों का ध्यान रखना होगा।
आगे की सुनवाई में पता चलेगा कि यह लड़ाई कहाँ तक जाएगी, लेकिन इतना तय है कि यह मुद्दा आने वाले दिनों में राजनीति और समाज दोनों में गहरी चर्चा का कारण बनेगा।

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